Friday, December 12, 2008
जीत का जश्न या बेशर्मी की पराकास्ता
१२ दिसम्बर को शाम ६.३० बजे का वह दृश्य है जबलपुर के घमापुर चौराहे का। एक तरफ नशे मैं धुत युवक अपनी राजनीतिक पार्टी की जीत की खुशी में बीच सड़क पर डांस कर रहे थे। उनके बीच पुलिस "गुंडों के बीच फँसी रजिया" जैसी भूमिका में खड़ी थी। ठीक दूसरी तरफ ट्रेफिक जाम का नजारा था। उलझे यातायात में सड़क पर पैर रखने की जगह तलाशते राहगीर जैसे कराह रहे थे । साईकिल रिक्शों पर बैठी महिलाओं ने सिसक रहे अपने बच्चों को आँचल में छुपा लिया। भीड़ में फसीं साईकिल सवार छात्राएं, बलिकाए आखें बंद किए शायद ऊपर वाले से यही दुआ कर रहीं थीं कि वे सकुशल घर पहुँच जायें । यहाँ हर परेशान चेहरे पर यही सवाल था कि यह जीत का जश्न है या बेशर्मी, और अराजकता की पराकास्था.....
Saturday, December 6, 2008
बात जबलपुर हॉस्पिटल की है। ५ दिसम्बर की रात यहाँ आईसीयू वार्ड में एक रिटायर फौजी मौत से सांसों के लिए जंग लड़ रहा था। फौजी के इकलौते, और बेरोजगार बेटे की आंखों में पानी था। उसके कथित अपने डॉक्टर द्वारा लिखी गई पर्चियां उसके हाथों में थमा देते। वह दौड़कर जाता दवा लेकर आता। खून देने की बात आई तो अपनों ने फौजी के बेटे को ही पलंग पर लिट्वा दिया । पलंग पर लेता वह मासूम यही सोच रहा था कि काश में कुछ कमा रहा होता...तो अपनों से बेगानों सा ये व्योहार न झेलना पड़ता।शायद जिन्दगी के सच से उसका सामना भी हो गया.........
Monday, December 1, 2008
दरिंदो के जख्म और किन्नरों का मरहम
जबलपुर के गोहलपुर थाना क्षेत्र स्तिथ बहोराबाग में सुबह फुटपाथ पर एक़ महिला दर्द से कराह रही थी फटे कपड़ो से झांकती उसकी देहा रक्त से सनी हुई थी । वह जूट का गन्दा बोरा ओढे कांप रही थी। न जाने ख़ुद को मर्द कहने या समझने वाले ,कितने कथित मर्द उस सड़क और फुटपाथ से गुजर गए लेकिन "अबला " की तरफ़ किसी ने नही देखा।लगभग ८ बजे फुटपाथ किनारे एक ऑटो रुका। उसमें से कुछ "किन्नर " उतरे। उन्होंने उस अबला को प्यार से सहारा दिया। उसे उठाकर ऑटो पर बैठाया। वे उस अबला को थाने और फिर हॉस्पिटल ले गए। वहां पता चला कि वह अबला मानसिक रूप से विक्षिप्त (पागल) है। उसके साथ रात में कुछ दरिंदों ने जबरदस्ती दुराचार किया। वहशत के निशान उस अबला की पूरी देह पर हैं । उसकी आत्मा रो रही है पर वह जुबां से कुछ बोलने में समर्थ नहीं। वहशी कब पकड़े जायेंगे पता नहीं पर उन किन्नरों को मेरा सलाम.... जिन्होंने उस अबोध सी २८ वर्षीया अबला का दर्द समझा। उसकी अस्पताल पहुंचाकर सचमुच मर्दानगी का परिचय दिया। ये फोटो उस वक्त का है जब किन्नर पीड़ित महिला को इलाज के लिए शहर के लेडी एल्गिन अस्पताल लेकर पहुंचे ।
Wednesday, November 26, 2008
चुनावी रात - खामोश क्यूँ है ये चौराहा...............
यह नजारा है जबलपुर के दमोहनाका चौराहे में २७ नवम्बर की आधी रात का , आम तोर पर सारी रात जागने वाला यहाँ चौराहा खामोश है उसके दूर दूर तक सुई पटक सन्नाटा है .कोई कह रहा था ये रात मे बांटी गई दारू का असर है। जिन्हें मिली वो रतजगा करने वाले सुरूर मे सो गए । कुछ को कम्बल मिले तो वे जाडा शांत करने दुबक कर नींद् मे गाफिल हो गए । जरुरत मंद आम आदमी इसलिए रात सडको पर नही निकला की उसे पुलिस के डंडे का भय था । थंकी सी रौशनी के बीच यह चित्र और भी कुछ कह रहा है .एक बात और भी है की २७ की सुबह छेत्रके विधायको का चयन होना है .
Friday, November 14, 2008
वो सबक...
में जबलपुर की सिहोरा तहसील के गाँव बरगवां में पैदा हुआ। बात उन दिनों की है जब में गावं के स्कूल में ही कक्चा पांचवीं पड़ता था । स्कूल केप्टिन भी था।मौसम बरसात का था। में बस्ता लेकर स्कूल जा रहा था। पगडंडी कीचड से सराबोर थी। पैर फिसलने की वजह से में गिर गया। मेरे कपड़े गंदे हो गए। मेंने उन कपडों को खेत में भरे पानी में धोया फिर उन्ही कपडों को पहनकर स्कूल पहुँचा काफी देर हो गई। स्कूल की चावी मेरे पास थी इसलिए मासाब और सभी छात्र बाहर ही खड़े थे। मासाब काफी नाराज हुए. उन्होंने मुझे जमकर लताड़ लगाई. गुस्से में में चावी और बस्ता फेककर घर भाग आया। घर पर आकर मैं खाना ही खा रहा था की मासाब घर आ गए। उन्होंने मेरे माता -पिता को बस्ता फेककर भाग आने की बात बताई। मेरी मां ने कहा मासाब इसे आप अभी स्कूल ले जाओ। मासाब ने खाते में से ही मुझे उठाया और मारते हुए एक किलोमीटर दूर स्कूल तक ले गए। नाराज होकर भागने की सजा दी और समझाया भी। मैंने घर आकर माता पिता से सिकायत की की वो कुछ बोले क्यों नही। दोनों ने एक स्वर में कहा मासाब ने ठीक किया...आज लगता है की उस सबक ने मुझे इस उचे मुकाम तक पहुँचा दिया.......
में जबलपुर की सिहोरा तहसील के गाँव बरगवां में पैदा हुआ। बात उन दिनों की है जब में गावं के स्कूल में ही कक्चा पांचवीं पड़ता था । स्कूल केप्टिन भी था।मौसम बरसात का था। में बस्ता लेकर स्कूल जा रहा था। पगडंडी कीचड से सराबोर थी। पैर फिसलने की वजह से में गिर गया। मेरे कपड़े गंदे हो गए। मेंने उन कपडों को खेत में भरे पानी में धोया फिर उन्ही कपडों को पहनकर स्कूल पहुँचा काफी देर हो गई। स्कूल की चावी मेरे पास थी इसलिए मासाब और सभी छात्र बाहर ही खड़े थे। मासाब काफी नाराज हुए. उन्होंने मुझे जमकर लताड़ लगाई. गुस्से में में चावी और बस्ता फेककर घर भाग आया। घर पर आकर मैं खाना ही खा रहा था की मासाब घर आ गए। उन्होंने मेरे माता -पिता को बस्ता फेककर भाग आने की बात बताई। मेरी मां ने कहा मासाब इसे आप अभी स्कूल ले जाओ। मासाब ने खाते में से ही मुझे उठाया और मारते हुए एक किलोमीटर दूर स्कूल तक ले गए। नाराज होकर भागने की सजा दी और समझाया भी। मैंने घर आकर माता पिता से सिकायत की की वो कुछ बोले क्यों नही। दोनों ने एक स्वर में कहा मासाब ने ठीक किया...आज लगता है की उस सबक ने मुझे इस उचे मुकाम तक पहुँचा दिया.......
Monday, November 10, 2008
मेरी गली का कोना
ये ब्लॉग मेरे उन अजीजों को समर्पित है जो अपनी गली में खड़े होकर इंडिया नही बल्कि भारत को देखते और महसूस करते हैं।
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